पूज्य श्री महाराज जी का संक्षिप्त जीवन परिचय
अपने प्रभु और गुरु तुल्य संतों की आज्ञा से पूज्य श्री महाराज जी विगत 35 वर्षों से प्रभु के नाम का प्रचार कर रहे हैं | इन 35 सालों में पूज्य श्री महाराजजी ने जो नाम का डंका बजाया, वह लिखने की वास्तु नहीं है| हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू और ना जाने कितने गाँव पूरी उत्तरी भारत में महाराज श्री ने बच्चे, बूढ़े, जवानों को भगवन्नाम में ऐसा रंग दिया की सब कोई कहते हैं -
अब नाही छूटे , नाम रट लागि |
विगत 10 वर्षों से प्रतिमाह गोवर्धन आश्रम में संस्था द्वारा संतों को नि:शुल्क दवाइयां दी जाती हैं| परन्तु पूज्य संत स्वामी श्री करूण दास जी को इतने से संतोष कहाँ| कुछ संतों को माह के बीच में दवाइयां या उपचार की आवश्यकता पड़ी तो पूज्य श्री ने साधू - संतों के लिए निःशुल्क अस्पताल बनाने का निर्णय लिया जो इस समय गोवर्धन में कार्यरत है |
जो संत घर छोड़कर प्रभु के भजन - चिंतन में लीन रहना चाहते हैं , ऐसे संतों के रहने के लिये पूज्य श्री बरसाना धाम में संतों के लिए संत कॉलोनी (108 कुटियों) का निर्माण भी हो चुका है, जिसमें संतों के आजीवन रहने व खाने-पीने की उचित व्यवस्था होगी |
श्री महाराज जी बाल्यकाल से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे | पाठशाला में पढ़ते हुए कक्षा में पास होने पर प्रतिवर्ष अपने गाँव से साइकिल द्वारा दस किलोमीटर चलकर भगति सरस्वती में स्नान करने जाय करते थे | इसके साथ - साथ पूज्य श्री महाराज जी प्रत्येक रविवार को भगवती वागेश्वरी सरस्वती जी के नाम से व्रत भी किया करते थे |
पिता श्री बालशेर सिंह व् माता श्रीमति रेवती देवी को आपके माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | आपके पूर्वज सिक्ख मत के अनुयायी व् पंजाब के रोपड़ के पास एक ग्राम के निवासी थे | बाद में हरियाणा में आ बसे | आप बाल्यकाल से ही धार्मिक और सहिष्णु स्वभाव के थे | बचपन से ही आपके व्यक्तित्व में सात्विक गुणों की अभिव्यक्ति होने लगी थी | बचपन में गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी व सेठ श्री श्री जयदयाल गोयन्दका की लिखी पुस्तकें बड़ी लगन से पढ़ते थे | इन पुस्तकों ने आपके ह्रदय में भक्ति-बीज अंकुरित कर दिया | पढ़ाई के साथ साथ मन अधिकतर भगवन्नाम जप व् चिंतन व्यतीत होने लगा | संसार से उपरामता बढ़ती गई | जगत आसार प्रतीत होने लगा |
एक बार सोलह साल की आयु में बिना बताये घर से निकल पड़े हिमालय कि ओर साधना करने | लेकिन प्रभु के अचिन्तय विधान से दुसरे ही दिन घर लौटना पड़ा | घर लौट आने पर एक सूक्ष्म व्याकुलता आपके मन में बनी रही | विरह की अग्नि भीतर-ही-सुलगती रही |
ध्रुव भक्त की कथा पढ़कर एक दिन सहसा बिना किसी को सूचना दिए चुपके से फिर घर से निकल पड़े | लकिन अबकी बार हिमालय के लिए नहीं, श्रीवृन्दावन धाम के लिए | रात्रि होने पर दिल्ली बस स्टैंड की ऊपरी मंज़िल में भूखे लेट गए | कोई अपरिचित ( सम्भवतः श्री ठाकुर जी ही हों ) उठाकर भोजन करा गए | अगले दिन बस द्वारा वृन्दावन पहुंचे |
तीन वर्ष वृन्दावन, फिर बारह वर्ष तक श्रीधाम बरसाना में निवास किया | बरसाना मान मंदिर में गुफा कक्ष में तीन वर्ष तक साधना रत रहे | यहीं पर एक दिन भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर भगवान श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य रूप ( श्री विष्णु ) की शरणागति कराई व कुछ भविष्य की बातें भी बताई | जो बाद में पूज्य श्री महाराज जी के जीवन में घटित हुई |
मान मंदिर ( बरसाना ) में तीन वर्ष निवास के बाद तिलक बिहार कॉलोनी ( बरसाना ) में निज कुटिया बनाकर एकांत में नौ वर्ष साधना रत रहे | श्रीराधाकृष्ण की उपासना करते हुए गुरु रूप में शिव आराधना भी चलती रही | इसी बीच पूज्य श्री महाराज जी को परम पूज्य भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ने अपने परमधाम गमन के लगभग इक्कीस साल बाद प्रकट होकर पावन दर्शन व आशीर्वाद देकर कृतार्थ किया | इन्ही दोनों स्वप्न में कई बार श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार व् पूज्य श्री राधा बाबा से रहस्य भरी वार्ता हुई जो की आज तक महाराज श्री ने किसी को नहीं बताई |
पूज्य श्री महाराज जी ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने जीवन में ग्यारह संतों का संग किया व इन सब संतों आप आज भी अपने गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं | पू. स्वामी श्रीकृष्णानन्द जी महाराज ( वृन्दावन ), पू. पंडित श्री गयाप्रसाद जी ( गोवर्धन ), पू. श्री इंजीनियर सरकार जी ( दरभंगा, बिहार ), पू. ठाकुर श्री घनश्यामदास जी ( वृन्दावन ), पू. आचार्य चरण श्री श्रीजी महाराज ( सलेमबाद, पुष्कर ) व पू. श्री जगन्नाथ बाबा ( वृन्दावन ) का प्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्ति की तथा भाई श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार जी ( गोरखपुर ), पू. श्री राधा बाबा ( गोरखपुर ), पू. श्रीजयदयाल गोयन्दका जी ( गोरखपुर ), पू. श्री बालकृष्णदास जी महाराज ( वृन्दावन ) का अप्रत्यक्ष सत्संग व कृपा प्राप्ती की |
अनंत श्री विभूषित प्रातः स्मरणीय अर्चनीय वंदनीय निम्बार्कपीठाधीश्वर पू. आचार्य श्री श्रीजी महाराज (श्रीराधासर्वेश्वर शरणदेवाचार्य जी महाराज ) से दीक्षित होकर नुकुंज वृन्दावन रसोपासना में आपने प्रवेश किया व पूज्य श्री इंजीनियर सरकार जी की आज्ञा से हरि नाम जप व हरि भक्ती के प्रचार के लिए श्री भक्तमाल गाथा व श्री मदभागवत कथा करने लगे |
आपने सन 1999 में राधाकृष्ण परिवार की स्थापना की जिसका उद्देश्य है ज्ञान, भक्ति और वैराग्य को भक्तों के ह्रदय में स्थापित कर परमार्थ पथ कि ओर प्रेरित करना व वृन्दावन बिहारी श्रीश्यामा श्याम के युगल चरण कमलों की प्रेमाभक्ती को प्राप्त करना |
आपका मुख्य आश्रम गिरिराज गोवर्धन की पावन तलहटी में राधाकृष्ण परिवार के नाम से विख्यात है | वर्तमान में गत पंद्रह वर्षों से पूज्य श्री महाराज जी यहीं विराजते हैं |